बुलंदशहर जालान शिव मंदिर, वाहलिमपुरा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस पर आज स्वामी डॉ. शंकरानंद जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत बाल लीलाओं का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया, जिसने सभी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वामी जी के मुखारविंद से भगवान के अलौकिक चरित्र को सुनकर सभी उपस्थित जन भाव-विभोर होकर झूम उठे।
आज की कथा का मुख्य प्रसंग भगवान के बाल्यकाल में किए गए अनेकों राक्षसों के वध और उनके उद्धार का था। स्वामी जी ने विशेष रूप से पूतना उद्धार की कथा का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे कंस के आदेश पर पूतना भगवान को मारने के उद्देश्य से अपने स्तनों पर कालकूट विष लगाकर आई थी, परंतु भगवान ने उसे भी अपने मातृत्व भाव से स्वीकार कर उसका उद्धार कर दिया। यह प्रसंग भगवान की असीम कृपा और वात्सल्य को दर्शाता है।
इसके उपरांत, गर्गाचार्य जी द्वारा नामकरण संस्कार का प्रसंग सुनाया गया। स्वामी जी ने बताया कि गर्गाचार्य जी ने भगवान कृष्ण और बलराम का नामकरण करते हुए कहा कि उनके अनेकों नाम होंगे, जो उनके विभिन्न स्वरूपों और लीलाओं को प्रकट करेंगे।
कथा के दौरान भगवान के मिट्टी खाने का प्रसंग भी अत्यंत मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया गया। स्वामी जी ने विस्तार से समझाया कि कैसे भगवान ने अपने मुख में यशोदा मैया को संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन कराकर उन्हें अपनी दिव्यता का अनुभव कराया। यह प्रसंग भगवान की। सर्वव्यापकता और उनकी लीलाओं की गूढ़ता को दर्शाता है।
स्वामी जी ने भगवान की माखन चोरी के पीछे का वास्तविक कारण भी बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि कंस के अत्याचारों के कारण मथुरा में सारा दूध और माखन जबरन भेजा जाता था। इसे रोकने और ग्वाल-बालों व ब्रजवासियों को पोषण प्रदान करने के उद्देश्य से ही भगवान ने माखन चोरी की लीला रची। यह केवल चोरी नहीं, अपितु लोक कल्याण की एक अद्भुत योजना थी।
कथा के मध्य में स्वामी डॉ. शंकरानंद जी महाराज द्वारा गाए गए भजनों पर सभी श्रद्धालु भाव-विभोर होकर झूम उठे और आनंदपूर्वक नृत्य करने लगे। संपूर्ण मंदिर परिसर भक्तिमय वातावरण में डूब गया।
इस पावन कथा में आयोजक ओमप्रकाश जालान, विश्वनाथ केजरीवाल, राजेंद्र अग्रवाल, अरुण गुप्ता, बिजेंद्र पाल सिंह, राकेश कुमार, अनिल कुमार, सतेंद्र, राधेलाल, बबीता, तरंग, निर्मल, विमला देवी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए और कथा का पुण्य लाभ प्राप्त किया। यह भागवत कथा धार्मिक सद्भाव और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।