डेलुआडिह में आयोजित श्रीमद्भागवत के पंचम दिवस आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कथा में भगवान के बाल लीलाओ का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान को माखन इसलिए अच्छा लगता हैं क्यूकि माखन भक्त का प्रतीक है। उन्होंने कथा में प्रवचन में समुन्द्र में कालीय नाग कि कथा का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कालीय नाग बृज में समुन्द्र में रहता था कोई समुन्द्र में जाता तो उससे वह मार देता था ।उन्होंने गोवर्धन लीला का वर्णन करते हुए बताया की सात कोस लंबे चौड़े कालिकाल के देवता गोवर्धननाथ को सात वर्ष के कन्हैया ने अपने सबसे छोटी उगली में सात दिनरात अपनी अंगुली पर रखा। भगवान धारण किए रहे इंद्र देव का अभिमान तोड़ा। इस लिए जीव को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए और कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, जिससे कर्म करोगे तो फल मिलेगा इसलिए भगवान ने भी कर्म को प्रधान बताते हुए कहा कर्म करना जीव का धर्म है फल देना मेरा काम है।आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहा |माता पिता की सेवा किए जाने का आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस ने भी माता पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा कर ली।
समझ लो उसने सभी तीर्थों की यात्रा करली। माता पिता के चरणों में ही तीर्थ है। उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद यह मानव तन मिला है इसका उपयोग सत्य के मार्ग पर चलने में लगा दो । जन्म सफल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से जीवन में भगवान की भक्ति जाग्रत हो जाती है। संसार में चारो और मोह माया व्याप्त है जिसमें मानव फंस कर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है। जबकि मनुष्य का शरीर अनेक जन्मों के पुण्यों के फल स्वरुप प्राप्त हुआ है। जिसका उद्देश्य संसार में परमात्मा के चरणों का आश्रय लेकर सदाचारी रुप से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए.