मीरजापुर संवाददाता,नगर के सिटी क्लब में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का प्रवचन तथा मूल पारायण का चतुर्थ दिवस रहा। काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानन्द तीर्थ जी महाराज के पावन सान्निध्य में अनेक स्थानों से आए भक्तों ने आध्यात्मिक गंगा में तथा भागीरथी गंगा में सानन्द डुबकी लगाई।काशी धर्म पीठाधीश्वर प्रवचन के दौरान पूज्य महाराज जी ने बताया कि भगवान की वस्तुओं को भगवान को समर्पित कर जीव मुक्ति को प्राप्त होता है।जब जब धर्म पर विपदा आती है तो उस विपदा को दूर करने के लिए तब तब भगवान का अवतार होता है जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…।
पुराणों के अनुसार, भगवान् विष्णु के दो भक्त हुए जय और विजय श्रापित होकर हाथी व मगरमच्छ के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे।गोवर्धन कथा का वर्णन किया। महाराज जी ने बताया कि कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। महाराज जी ने बताया कि परमात्मा ही परम सत्य है। जब हमारी वृत्ति परमात्मा में लगेगी तो संसार गायब हो जाएगा। प्रश्न यह है कि परमात्मा संसार में घुले-मिले हैं तो संसार का नाश होने पर भी परमात्मा का नाश क्यों नहीं होता। भगवान् संसार से जुड़े भी हैं और अलग भी हैं। आकाश में बादल रहता है और बादल के अंदर भी आकाश तत्व है। बादल के गायब होने पर भी आकाश गायब नहीं होता। इसी तरह संसार गायब होने पर भी परमात्मा गायब नहीं होते। संसार की कोई भी वस्तु भगवान् से अलग नहीं है। महाराज जी ने बताया भगवान् श्रीकृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की। इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया।
प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।
महाराज जी ने बताया कि वास्तविकता में श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया।इस काशी में चल रहे कथा कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार अरुण कुमार दुबे, राम आशीष दुबे,अनिल दुबे, उदय गुप्ता, महेंद्र पांडेय तथा सम्पूर्ण नगर वासी परिवार नित्य प्रति श्रोताओं तथा विभिन्न स्थानों से आए हुए भक्तों में बड़ा उल्लास देखने को मिला।भक्त जन गंगा में गोता लगाकर भगवान विश्वनाथ का दर्शन भी बड़ी सुगमता से प्राप्त कर रहे हैं। काशी धर्मपीठ के उत्तराधिकारी लखन स्वरूप ब्रह्मचारी प्रतिदिन गुरु शुश्रुषा पूर्वक सभी के लिए अच्छा प्रबंधन कर रहे हैं। मुन्ना दुबे, चंद्र प्रकाश त्रिपाठी, सतीश मिश्रा,देवेश गोयल, विनोद तिवारी इत्यादि अन्यान्य महानुभावों की उपस्थिति रही।