Thursday, August 28, 2025
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घर वालों ने आपस में जब बातें करना छोड़ दिया,मिट्ठू ने भी राम-राम की टेर पकड़ना छोड़ दिया। दो रोटी का डर बाबा- दादी के अंदर यूं पैठा, जो मिलता वो खा लेते फरमाइश करना छोड़ दिया !

सीतापुर– युवा ग़ज़लकार रघुवर आनंद ने संयुक्त परिवार के टूटने की व्यथा को जब अपनी सधी हुई और गंभीर आवाज़ में प्रस्तुत करते है तो श्रोताओं की आंखें और मन दोनों ही नम हो जाते है। नम आंखों से भी तालियां बजाते हुए श्रोता इस युवा कवि को प्रोत्साहित करते है रघुवर आनंद वर्तमान समय में ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर हैं और युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं रघुवर आनंद की ग़ज़लों में सामाजिक, पारिवारिक ,व्यक्तिगत समस्याओं का गहराई से विश्लेषण और उनके समाधान को प्रस्तुत करने की भावना दिखती है। रघुवर आनंद ने अपने काव्य पाठ गजलों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई व देश के प्रमुख ग़ज़लकार के रूप में बहुत कम समय में उन्होंने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई हैं।

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