बिधूना,औरैया। भारतीय शिक्षण मंडल कानपुर प्रांत के तत्वाधान में मन्नूलाल लाल द्विवेदी महाविद्यालय सहार में व्यास पूजा उत्सव कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसका शुभारंभ ध्येय श्लोक के द्वारा किया गया, वहीं इस इस कार्यक्रम में गुरु शिष्य संबंधों की आत्मीयता कायम रखने पर विशेष जोर दिया गया। .इस मौके पर मन्नूलाल द्विवेदी महा विद्यालय सहार के कार्यवाहक प्राचार्य एवं भारतीय शिक्षण मंडल औरैया के जिलाध्यक्ष डॉ धीरेंद्र सिंह सेंगर ने व्यास पूजा के महत्व एवं गुरु शिष्य परंपरा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए गुरुजनों एवं शिष्यों को अपने अपने दायित्वों और कर्तव्यों का निर्वाहन बहुत जरूरी है साथ ही अपनी प्राचीन परंपरा के नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए गुरु शिष्य संबंधों के बीच आत्मीयता भी बहुत आवश्यक है। बच्चे राष्ट्र निर्माता है और उनके सर्वांगीण विकास का दायित्व गुरुजनों पर निर्भर है और गुरुजन अपने दायित्व का निर्वहन तभी कर सकते हैं जब शिष्य भी उन पर अपनी सच्ची निष्ठा कायम रखें। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली में व्यवसायीकारण तकनीकी प्रगति और सामाजिक संरचनाओं में बदलाव के कारण गुरु शिष्य परंपरा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो काफी चिंताजनक भी है। इस मौके प्रांत मार्ग टोली सदस्य कानपुर प्रांत डॉ प्रवीण सक्सेना ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा बहुत पवित्र और गरिमामय रही है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा उसकी अद्वितीय परंपराओं में समाहित है।
उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा शिक्षा तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू में शिष्य को पूर्ण मनुष्य बनाने की रही है। डॉ सक्सेना ने कहा कि गुरु वह दीपक है जो शिष्य को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकाल कर आत्मबोध की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय काल गणना के अनुसार अषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था उन्होंने वेदों का विभाजन कर चार भागों में क्रमबद्ध किया और यह वेद भारतीय संस्कृति की आत्मा है साथ ही वेद मानव कल्याण का साधन भी है। इस मौके पर मन्नू लाल द्विवेदी महाविद्यालय के प्रबंधक प्यारेलाल द्विवेदी ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा का शुभारंभ वैदिक काल से माना जाता है उस समय विद्यार्थी गुरुकुलों में रहकर गुरुजनों के निर्देशन में रहकर अध्ययन करते थे और यह शिक्षा भी किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं थी बल्कि चरित्र निर्माण नैतिकता जीवन मूल्य धर्म आध्यात्म और व्यवहारिक जीवन के कौशल भी शिष्यों को सिखाए जाते थे लेकिन इसमें कुछ गिरावट आने से गुरु शिष्य संबंधों की आत्मीयता भी घटी है जो सोचनीय है। इस मौके पर उमेश चंद्र शुक्ला, कृष्ण कुमार, अजय शर्मा, अंकित कुमार, रामपाल सिंह भदौरिया, अनिल राजपूत, सुधा, सत्यवीर राजपूत, जागेश्वर प्रसाद, मोहम्मद कयूम खान आदि प्रमुख लोगों के साथ महाविद्यालय की छात्र-छात्राएं भी मौजूद थीं।