शिव धनुष के खंडन के बाद परशुराम जी का आगमन हुआ परशुराम श्री राम की महिमा जानकर परशुराम जी ने उन्हें विष्णु का धनुष दिया और प्रणाम करके तपस्या के लिए चले गए बाद में श्री राम बारात एवं चारों भाइयों के विवाह का अवधपुरी वासियों ने उत्सव मनाया सभी के मन में श्री राम के राज्य अभिषेक की कल्पना जागृत हुई किंतु किसी ने भी उसे प्रकट नहीं किया संकेत यह हुआ कि सुख की कोई सीमा नहीं होती लेकिन उसका अंत निश्चित होता है हम जीवन में सुख ही सुख पाना चाहते हैं दुख नहीं लेकिन दुख भी जीवन में आता है क्योंकि शुख दुख दोनों जीवन के अंग है जीवन में सुख के बाद दुःख अवश्य आता है
अयोध्यावासी भी इससे दूर नहीं रह सके उन्हें भी सुख के बाद दुख का सामना करना पड़ा मंथरा और कैकई के माध्यम से श्री राम के वन गमन की पृष्ठभूमि तैयार हुई राजा दशरथ ने सत्य का पालन करते हुए कैकई को दो वरदान दिए जिसमें पहला राम को 14 बर्ष का बनवास और दूसरे में भारत को अयोध्या का राज्य राम जी को जब इस बात का पता चला तो वह सीता एवं लक्ष्मण जी के साथ बन जाने के लिए उत्सुक हुए राम जी का वन गमन होना कई दृष्टि से देखा जा सकता है जैसे 1- माता-पिता के वचनों का पालन करने के लिए समस्त वैभव का त्याग करते हुए वन गमन स्वीकार किया 2-भारत जी के प्रेम को लेकर वन चले गए 3- संत सेवा एवं कठोर तपस्या के लिए वन गमन का वरदान स्वीकार किया 4-वनवासी कोलभील आदि जातियों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने के लिए वन गमन स्वीकार किया गया 5- अनेक भूखंडों को एकत्रित करके अखंड राष्ट्र की स्थापना एवं राक्षसों से मुक्त कराकर साधु संतों की रक्षा करना भी बन गवन की लीला का एक मुख्य उद्देश्य था भालू बानर जाति को एकत्रित कर सनातन को मजबूत करने के लिए वन गवन को स्वीकार किया
राम कथा के पश्चात कानपुर से आए कलाकार यीशु तिलकधारी की टीम के द्वारा रासलीला का मंचन किया जिसमें सुंदर-सुंदर झांकियां के माध्यम से राधा कृष्ण के प्रेम एवं झगड़ा का सुंदर मंचन, शिव पार्वती की लीला, हनुमान जी के विराट स्वरूप का दर्शन आदि कलाओं का मंचन किया गया