Thursday, August 28, 2025
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छोटा टैंक, बड़ा उत्पादन; मत्स्य पालन में तकनीक का कमाल !

देवरिया,,कम जमीन, सीमित संसाधन और कम पानी में भी अब मत्स्य पालन कर अच्छी आमदनी की जा सकती है। देवरिया जनपद की एक ग्रामीण महिला ने इसे सच कर दिखाया है। रामपुर कारखाना विकासखंड के बरियारपुर जेठहसी टोला की निवासी मनभावती देवी ने प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत लघु री-सर्कुलेटरी एक्वा कल्चर तकनीक को अपनाकर मत्स्य पालन का व्यवसाय शुरू किया और आज आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई हैं।
इस तकनीक के तहत मात्र 10 गुना 10 मीटर के एक सिमेंटेड टैंक में एक एकड़ के पारंपरिक तालाब जितना मछली उत्पादन संभव हो जाता है। इस सिस्टम में पानी को मशीनों के जरिए साफ करके दोबारा टैंक में वापस डाला जाता है, जिससे बार-बार पानी बदलने की जरूरत नहीं होती। इसमें फास्ट ग्रोथ देने वाली प्रजातियों का बीज डाला जाता है और वैज्ञानिक ढंग से उन्हें पोषण दिया जाता है। टैंक में फाइटोप्लैंकटन, जूप्लैंकटन जैसे सूक्ष्म जीव और पूरक आहार डालकर मछलियों की वृद्धि को तेज किया जाता है।
मनभावती देवी पहले परंपरागत कच्चे तालाब में मछली पालन करती थीं। योजना के बारे में जानकारी मिलने के बाद उन्होंने विभागीय संपर्क किया और आधुनिक प्रणाली को अपनाया। अब वे न केवल खुद अच्छा लाभ कमा रही हैं, बल्कि कई अन्य लोगों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दे रही हैं।


री-सर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम खासतौर पर उन लोगों के लिए कारगर है जिनके पास सीमित भूमि और पूंजी है, लेकिन कुछ नया करने का जज़्बा है। इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें उत्पादन किसान की मर्जी से होता है और बिक्री भी उसकी शर्तों पर तय होती है, जबकि पारंपरिक तालाबों में शिकार मछुआरों पर निर्भर रहना पड़ता है।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के जरिए अब देवरिया जनपद में लगभग डेढ़ दर्जन मत्स्य पालक इस तकनीक से लाभान्वित हो चुके हैं। यह तकनीक ग्रामीण भारत में मत्स्य पालन को आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तिकरण का सशक्त जरिया बना रही है।

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